Saturday, February 13, 2010

चांदनी रात है

चांदनी रात है
खिड़की पे बैठी हूँ
और दिल भी उदास है
समंदर के पास हवा के
झोंके मेरे बालो को सहलाये क्यों है ?
दिल बेखयाल हो के दर्द ही
पड़ता जाये क्यों है?
और चाँद मुझे निहारे क्यों है
आज मुझे फिर से कोई
पुकारे क्यों है
रात है घनी घनी सी
तनहा है मेरी राते
तनहा है मेरी बाते
ऐसे में तनहा रात
गुजरे क्यों है ?
ऑंखें पढ़ते पढ़ते
नाम सी हो गई
सामने से धूमकेतु भी
गुजरे क्यों है?
हाय आज में धूमकेतु से ही
कुछ तो मांग लेती
मगर अनामिका बेख्याल हुई
अपना अतीत पढने मे ही
तनहा रात गुजारे क्यों है?
ये रात रौशनी कर रही है
जाते जाते इतना तो
बता जा अनामिका को
ये रौशनी आई मेरे
दवारे क्यों है?

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