Monday, February 15, 2010

जिंदगी भी हमे कितने रंग दिखाती है


जिंदगी भी हमे कितने रंग दिखाती है
गम ओ ख़ुशी से तार्रुफ़ करवाती है

कभी कभी होंठो की मुस्कराहट से
दर्द भरी एक आह सी सुनाती है

आई होगी किसी को हिजेर में मौत
हमे तो नींद तक नहीं दिलाती है

हज़ार रंग उतर आये हैं सोच में
मोहब्बत के रंग क्यों छुपाती है ?

दर्द में जीना ही मेरा इलाज हुआ
क्यों ये बीमार ही रहना चाहती है ?

अजीब बात खुद से नज़र चुअने वाली
दोसरों को कैसे आइना दिखाती है !!!!!!

इस ख्याल से शब् भर रोये हम
सुबा की किरण दर्द और बढ़ाती है

मिल जाएँगी सारे जहा को दुआएं भी
मुझे ही बदुआ देने क्यों चली आती है ?

तू गर चाहे तो तकदीर कों भी झुका दू
पर किस्मत कों भी तू अपना ही बनती है

कब तक दिल के गम सहते रहे हम?
सब्र का पैमाना आखिर में भर जाती है

पास रह कर पहचान ना पाए "आना" कों
दूर से देख मुझे क्यों अब मुस्कुराती है ?

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