Sunday, February 14, 2010

मेरी बंद गली का चाँद


देर तक मुझ पर हँसता रहा
मेरी बंद गली का चाँद

गया कुछ नहीं तो
रहा भी कुछ नहीं मेरा
मुझे रातदिन की तन्हाई बताता रहा
मेरी बंद गली का चाँद

घर की छत खड़ी रही
मैं आहें भरती रही
बिना आवाज़ दिए देखता रहा
मेरी बंद गली का चाँद

उदासी आँखों मैं रही ऐसे
दीदार की हसरत रही हो जैसे
देख कर भी ऑंखें फेरता रहा
मेरी बंद गली का चाँद

मोहब्बत भी खंज़र हो गई
ज़वानी जखम में खो गई
जुदाई स क्यों घबराता रहा
मेरी बंद गली का चाँद

दीवाने हुए हैं मस्ताने हुए हैं
दिल लगा कर क़ैद में सोये हैं
ज़ंजीर में भी अश्क बहता रहा
मेरी बंद गली का चाँद

हवा के झोंके आते हैं
तूफान स पते झड जाते हैं
पतों पे नाम "आना" लिखता रहा
मेरी बंद गली का चाँद

चाँद चुप मेरी बेबसी सुनता रहा
चाँद चुप मुझे तन्हाई देता रहा
चाँद चुप मुझे देखता रहा
चाँद चुप मुझसे ऑंखें फेरता रहा
चाँद चुपके स घबराता रहा
चाँद चुप मेरा नाम आना लिखता रहा

अब चाँद ने भी चुपी अपनी तोड़ी
बंद गली की दीवार भी सर स फोड़ी
मैं भी तेरे पास आने को हूँ बेकरार
मैं भी करता हों तुमसे बहुत पयार
आंसू की बाढ़ लिए बंद गली फोड़ता रहा
मेरी बंद गली का चाँद

अरे !!!! कोई तो निकालो मेरे चाँद को
देखो आके दीवार फोड़ रहा है मेरा चाँद
दर्द ऐ दिल के आंसू लिए मुस्कुराता रहा
मेरी बंद गली का चाँद
और मुझसे मिलने को तरसता रहा
मेरी बंद गली का चाँद

1 comment:

  1. अरे !!!! कोई तो निकालो मेरे चाँद को
    देखो आके दीवार फोड़ रहा है मेरा चाँद
    दर्द ऐ दिल के आंसू लिए मुस्कुराता रहा
    मेरी बंद गली का चाँद
    और मुझसे मिलने को तरसता रहा
    मेरी बंद गली का चाँद


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    sakhi bas yahi kah sakti hu

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