Saturday, March 13, 2010

ए मेरी ग़ज़ल



ए मेरी ग़ज़ल तुझे किस ख्याल से लिखू बता दे मुझको
इश्क लिखू या फिर दर्द का फ़साना समझा दे मुझको

रंग भरे फूलों को ही हस्ते हुए देखा करते हैं हम अक्सर
मेरे गीत के अल्फाज़ मुस्कुराये वो फूल दिला दे मुझको

तुमसे मिलकर भी क्यों दूर नहीं होते मेरे अन्धेरें
अपनी मोहब्बत से जहाँ जगमगाए वो दिया दे मुझको

चांदनी रातों के साये में देखा हैं अक्सर अपने चाँद को
रात की तन्हाई के आलम में दीवाना बना दे मुझ्को

धीरे धीरे ढल रही है रात अब सहर होने को आये है
ढले न कभी मोहब्बत ए सरूर ऐसा नशा दे मुझ्को

सा सा सा रे रे रे गा गा गा मा मा मा पा धा सा रे
सुरों के सरगम से बने ऐसी ग़ज़ल "आना" दे मुझ्को

2 comments:

  1. धीरे धीरे ढल रही है रात अब सहर होने को आये है
    ढले न कभी मोहब्बत ए सरूर ऐसा नशा दे मुझ्को

    bahut sundar

    aapki sarii rachnaaye ..pavitr hriday dvara anubhut ..pavitr prem kii dastaan hain

    ati sundar rachnaaye ..anamika jii

    mujhe khushi hain kii main aapki rachnaao ko padh taha huun

    kishor

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  2. apko humari rachnaye pasand aa rahi hai iske liye hum apke tah dil se shukergujar hain ji

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