Tuesday, February 16, 2010

मीठा ज़हर -1

चंचल शोख सी एक हसीना
चकती महकती रहती थी
गम क्या होता है
वो कभी न जानती थी
खूबसूरती में तो बस क़यामत थी
जो भी एक नज़र उसे देख लेता
उसी का हो कर रह जाता
उसके रूप के नजाने
कितने ही दीवाने बन गए
शाएरी के नए बहाने बन गए
हर कोई उसकी एक झलक
पाने रहने लगा बेताब
जैसे वो हसीना हो कोई महताब
हसीना किसे चाहे
क्या है सोचे हैं
है हर कोई इस बात से अनजान
लब पे सबके बस हसीना का नाम

हसीना के दिल में भी
एक चाहत होती थी बार बार
चांदनी रातो में
करती चाँद से बाते हज़ार
हर बार चाँद से पूछा करती
ए चाँद ---------------

ए चाँद मुझको बता दे
कहाँ है मेरे खवाबो का राजकुमार
जिसे देखने को दिल है बेकरार

चाँद हसीना की बात पर हसा
कुछ न बोला
कुछ न बोला
अपनी शरारती नज़रो से
बादलों के संग लुका छुपी करते हुए
हसीना को निहारे जा रहा था
जैसे चाँद भी
उसके हुसन का दीवाना हो गया हो
हसीना भी मुस्कुराते हुए
चाँद में ही कहीं खो गई
जैसे वो चाँद में आने वाले
ख्वाबो की ताबीर देख रही हो

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