Thursday, February 18, 2010

मीठा ज़हर -2


चाँद को देखते हुए
हसीना कब सो गई
उसे खुद भी अंदाजा न हुआ

रोज्मरा की जिंदगी
भाग दौड़ मैं ही निकल जाये
किसी के पास इतनी फुर्सत कहा
जो पल भर के लिए भी मुस्कुराये
लेकिन हसीना हस्ती मुस्कुराती रहती
उसकी खूबसूरती के जितने दीवाने थे
उतने ही उसकी शाएरी के भी परवाने थे
जब वो लिखती गजब कर देती
उसकी शाएरी का सरूर ही ऐसा था
हर किसी को बस पड़ने का नशा था

लिखती वोह मोहब्बत की बाते
जवा रुत की हसीन मुलाकाते
तनहाई के आलम मैं जवा राते
चाँद को आँखों मैं लिए करती
वो पयार मोहब्बत की बाते

वो देखा करती अपने
राजकुमार के हसीन खवाब
नजाने कहा छुपे बैठे हैं नवाब
एक आह सी भर के रह जाती हसीना

एक दिन अपने ही खयालो
मैं गुमसुम बैठी हुई थी
तभी दवाजा खटकने की आवाज
सुनाई दी
दरवाजा खोला तो
एक बहुत ही खूबसूरत लिफाफा पाया
जिसमे गुलाब सा ख़त मिला
जिसे खोल कर वोह पढने लगी
उसमे जो कुछ भी लिखा
उसे पड़ते पड़ते
उसके चहरे पर हेरानी के भाव
आते रहे
अब आलम ये था
एक रंग आ रहा था तो
दूजा रंग जा रहा था

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