Thursday, February 18, 2010



ख़त पढ़ते पढ़ते
हसीना का चेहरा से
गुलाल हो रहा था
उसे समझ नहीं आये
वोह कभी ख़त देखे
कभी खुद पे शर्माए
वोह फिर से ख़त पढने लगी

ख़त कुछ ही ऐसा था
जिसमे लिखा खवाब ही ऐसा था

ए हसीना सुनो ज़रा दिल थाम कर
हम तुमे चाहते हैं अपना जान कर

इसे महज एक ख़त न समझना
वर्ना हो जऊँगा खुद से बेगाना
क्या तुम मेरे संग पसंद करोगी
अपना पूरा जीवन बिताना
अगर है हां तुमारी तो
नदिया के उस पार तुम चली "आना"

ख़त पढ़ते पढ़ते हसीना की आँखें
लजा हया से इतराई जाये है
क्या करे किसे कहे
कुछ भी कहा न जाये है :)

आज की रात
हसीना की बिताये न बीते है
अब पता चला मोहब्बत में
लोग कैसे जीते हैं

पर ये उसे हो क्या रहा
जबसे ख़त पढ़ा है
वो तो एकदम गुमसुम सी हो गई
उसकी आज की रात लंबी
और लंबी होती जा रही थी

खिड़की की और देखा तो
चाँद का आगमन हो गया था
चाँद भी उसे देख कर
मुस्कुरा रहा था
मुस्कुराये भी क्यों न
आखिर वो हसीना के दिल
में हो रही एक एक हलचल से
वाकिफ जो था
हसीना ने चाँद को देखते ही
नज़रे अपनी हया से
झुका ली
चाँद बोला ..........

बोल री ए हसीना
आज तुने मुझसे आँखें क्यों
चुरा ली
आखिर वोह क्या बात है

जिसकी वजा से
हमसे sari बाते छुपा ली

सुन कर हसीना धीरे से मुस्कुरा दी
नज़रे उठा कर चाँद की और देखने लगी

मन ही मन चाँद को कहा
हाय कितना शरारती हो तुम भी
सब जानते हो
फिर भी नासमझ बनते हो
चाँद बस मुस्कुराये जा रहा था

हसीना ने धीरे से
शरमाते हुए उस ख़त का
खुलासा चाँद से किया
चाँद फिर हस पढ़ा

हसीना ब्सितर में
नींद के आगोश में चली गई
और चाँद उसे पल पल निहार रहा था

लेकिन आज चाँद
हसीना के बाते सुन कर
चुप बैठा काफी देर तक सोचता रहा

ये मोहब्बत भी क्या बला है
होश गवा देती है
अपना सब कुछ भूला देती है
देखो हसीना
कितने पायारे खवाब ले रही है
बिना उसे जाने
बिना उसे समझे
चाँद ने एक लम्बी साँस ली
और हसीना आने वाले कल
के बारे में सोच खवाब सजा रही थी
कैसा दीखता होगा वोह
न जाने कैसे कैसे ख्याल
आये जा रहे थे

सुबह हुई
हसीना मजे से शाम तक
इंतजार करने लगी
शाम होते ही वोह
मिलने चली गई
नदिया के उस पर
जहा इंतजार कर रहा था
उसके खवाबो का राजकुमार

हसीना ने जैसे ही
उसे देखा बस देखते ही रह गई
वोह बिलकुल वैसा था
जैसे उसने खवाब सजा रखे थे
सुंदर अति सुंदर
चेहरा जैसे चाँद चमक रहा हो
आँखें जैसे झील सी गहराई हो
बस देखे देखे जा रही थी हसीना

दोनों काफी देर तक चुप रहे
आँखों एक दूजे को तकते रहे
मोहब्बत का हसीं सफ़र शुरू हो गया था
दोनों को जीने का सहारा मिल गया था

हसीना करने लगी अब रोज
उसके आने का इंतजार
होता बेकरार उसके लिए
राकुमार भी बेशुमार
दोनों मोहब्बत की एक
नई दुनिया बसाये हुए थे
जैसे वो एज दूजे के लिए ही बने थे

वक़्त गुजरता रहा अपनी रफ़्तार से
वोह दोनों एक दूजे के लिए
कुछ भी करने को अब तैयार थे

उनके इश्क के तराने
ये नदिया पवन गा रहे थी

हर तरफ मोहब्बत ही मोहब्बत
जवाह होने छाये रही थी
वो दोनों एक दूजे का साथ पाकर
सारा जहा भूल बैठे थे

एक दिन
नदिया के किनारे
वो दोनों बैठे हुए थे
राजकुमार हसीना की गोद मैं
अपना सर किये हुए था
और हसीना उसके सर के बालो पर
अपनी उँगलियाँ फेर रही थी
तबी हसीना राजकुमार से बोली

suno

.........

अब आपके बिना एक पल
हमसे रहा नहीं जायेगा
जुदाई का पल हमसे सहा नहीं जायगा
हमसे अब कभी जुदा न होना
राजकुमार उसकी बात सुनकर
मुस्कुरा दिया
पगली क्या मैं रह पऊंगा तेरे बिना
मुश्किल हो जायगा ऐसे मैं मेरा जीना
जुदाई की बाते न किया कर
नदिया के पार जहा मेरा घर है

No comments:

Post a Comment