Thursday, February 18, 2010

मीठा ज़हर -4

हसीना ने घर आते ही
रात के साये में
चाँद का इंतज़ार करने लगी
चाँद हमेशा की तरह
बदलो के संग लुका छुपी
करता हुआ आया
हसीना ने आते ही
आज शाम की हुई मुलाकात का
खुलासा चाँद से किया
चाँद मन ही मन मुस्कुरा रहा था
और साथ ही हसीना के लिए बेचैन भी था

नदिया के उस पार
कैसा है मेरा जहा
बस ये सब सोचते सोचते
उसके दिन बी दिन बीते जाये
पर ये क्या हुआ
राजकुमार की अब
कोई खबर ही न आये
हसीना राजकुमार को न पाकर
रहने लगी बेताब
इंतजार करने लगी उसका
और चाँद से करती
ढेरो ही सवाल
अब चाँद भी
क्या देता जवाब
वो खुद भी न जाने
आखिर कहा गया
उसका राजकुमार
?????????????????????

हसीना रोज ही करने लगी
राजकुमार के आने का इंतज़ार
वो नहीं आया
वो नहीं आया
आखिर क्यों नहीं आया

हसीना ने बदलो से
बहते पानी से
चलती पवन से
तनहा रात से
करने लगे
मिन्नतें हज़ार

सुनो ज़रा
तुम वह भी होंगे
जहा वो हैं
जाओ उनको मेरा संदेशा देना
और कहना
उनके बिना एक भी पल
मुश्किल है दूर रहना
जाओ जल्दी जाओ
नदिया के उस पर
जहा है मेरा राजकुमार
जिससे करती हूँ
मैं पयार बेशुमार

कहते कहते हसीना
की ऑंखें हैं भर आई
हाय ये कैसी थी रुसवाई

दिन गुजरते गए
लेकिन वो नहीं आये

अपने कमरे की खिड़की
पर कुहनियों के बल पर बैठी है हसीना
चाँद उसे देख रहा है
सदा हसने वाला चाँद
उसकी बेचैन निगाहों को देख कर
चाँद भी उदास हो गया
हसीना ने गर्दन जैसे ही उपर की
तो चाँद सामने था
चाँद से हमेशा बाते करने वाली
हसीना आज चुप
खामोश नज़रो से
चाँद को देख रही थी
जैसे आज हसीना नहीं
उसकी ख़ामोशी
चाँद से सवाल करे है
और पूछे हैं
ये चाँद

पतझड़ हो के भी चली गई
बहारो का मौसम भी
गुजर गया
बिना उनके
सावन ने मेरे तपते हुए
बदन पे कोड़े बरसा दिए
सर्दी के कोहरे ने
मेरे बदन और भी ठंडा कर दिया
गर्मी की रुत ने
मेरे बदन को और भी तडपा दिया
मगर वो नहीं ये
कुदरत एक एक नज़ारा
आया
पतझड़ सावन बसंत बहार
चारो के चारो रुतुयें
आती रही
फिर वो क्यों नहीं आये
आखिर क्यों नहीं आये
बंद होंठो ने कुछ न कह कर
खामोश आँखों ने
हसीना के दिल मैं छुपा
सारा दर्द
चाँद से कह दिया
और चाँद भी
आज उदास तनहा या
खामोश हो गया

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