Thursday, February 18, 2010

मीठा ज़हर -5

आजकल चाँद भी नहीं आ रहा
अमावास की रात जो है
हसीना चाँद के आने का
बेसब्री से करती थी इंतजार
जानती थी पूरनमाशी को
पायेगी चाँद का दीदार
मगर अपने चाँद का
क्या करे
जिसने उसकी किस्मत मैं
कभी न ख़तम होने वाली
अमावास लिख दी

दिन तो बीत रहे थे
गम के सागर में डूबे हुए
महफ़िल सजी हुई है
सभी वाह वाह कर रहे हैं
ऐसे में
हसीना के कानो में
एक आवाज सुनाई दी
वो पहचान गई
ये उसके राजकुमार की आवाज है
वो दौड़ी चली आई
राजकुमार को देख कर
उसकी ऑंखें मुस्कुराई
धड़कने भी काबू में न रही
सांसे तेज हो गई
लेकिन ये क्या
राजकुमार ने उसकी तरफ देखा तक नई
महफ़िल वाह वाह कर रही है
इधर हसीना की जान अटकी है
दिल करे महफ़िल अभी ख़तम हो जाये
और राजकुमार के सीने से लग जाये
महफ़िल के ख़तम होते ही
वो तरसती आँखों से
राजकुमार की और आई
लेकिन राजकुमार उससे अनजान
बना रहा
समझ नई आ रहा हस्सीना
क्यों है उसके लिए पराई

राजकुमार ने कुछ देर तो
हसीना को देखा
हसीना के पुकारते ही
राजकुमार ने एक झटका दे डाला
भूल जाओ मुझे
तुम मेरी मोहब्बत से
सदा के लिए आज़ाद हो
मैं तुमे इस बंधन से करता हूँ मुक्त
जाओ अपनी दुनियां मैं
खुश रहो
जहा तुमरे दीवाने
तुमारा इंतजार मैं खड़े हैं
हसीना ये क्या सुन रही है
जिसके इंतजार में
उसने अपने रातो की नींद तक
गवा दी
दिन का चैन खो दिया
कब उसका राजकुमार आएगा
और कब उसे गले लगाएगा
और आज आया भी तो
ये सबा सुना कर चला गया
और हसीना शून्य से भाव लिए
राज्कुअमर को देखती रही
जहा से वो मोड़ मुड़ गया
और वो वही खड़ी रह गई
जैसे वोकोई बुत हो
आज तो चाँद बी नई निकलने वाला
जिसे वोअपना दुःख बयां कर सकती
हसीना अपना टूटा दिल लिए
ये शहर छोड़ने का फैसला कर
इस जहा से दूर चल पढ़ी
बिना किसी को कुछ बताये हुए

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