Saturday, March 13, 2010

मोहब्बत का अजब सा हो असर तो क्या कहू



मोहब्बत का अजब सा हो असर तो क्या कहू
धड़कते दिल की शरमाये जब नज़र तो क्या कहू

तडप मिलने की बढती जा रही अब दिन बा दिन
मोहब्बत की बेकरारी जगाये इधर तो क्या कहू

इश्क की आग में जलती जाये है शमा रातोदिन
परवाना जब बन जाये है दिलबर तो क्या कहू

इश्क में अपना हाल अब क्या बयां करे हम
जो इधर है हाल वही हो जाये उधर तो क्या कहू

दूर रह कर भी जो आ गया है दिल के करीब
सामने जब वो आ जाये नज़र तो क्या कहू


भीगी बरसती रातों में सर्द हवाएं शोर मचाये
ऐसे मैं वो बाँहों में मुझे ले जो भर तो क्या कहू

उसके आगोश में आने का नशा है या जादू कोई
दीवानगी कर जाये जब मुझ पे असर तो क्या कहू

शरमाये इतराए इश्क में लजाये है अब आनामिका
अपने महबूब का सर हो मेरे शानो पर तो क्या कहू

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